SHRI RAM MANDIR AYODHYA | श्री राम मंदिर अयोध्या
अयोध्या और भगवान राम का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व:
अयोध्या:
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हिंदू धर्म में सात सबसे पवित्र शहरों में से एक माना जाता है।
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रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन महाकाव्यों में इसका उल्लेख कोसल साम्राज्य की राजधानी के रूप में किया गया है, जिस पर राजा दशरथ का शासन था।
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माना जाता है कि यह भगवान राम का जन्मस्थान है, जो धर्मनिष्ठता और आदर्श राजत्व का प्रतीक एक पूजनीय देवता हैं।
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मौर्य, गुप्त और मुगलों सहित विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं और राजवंशों का साक्षी रहा है।
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हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बना हुआ है, जो सालाना लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
भगवान राम:
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हिंदू धर्म में संरक्षक देवता, भगवान विष्णु के सातवें अवतार।
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रामायण का केंद्रीय पात्र, जो उनके वनवास की यात्रा, उनकी पत्नी सीता के अपहरण और अंततः राक्षस राजा रावण पर विजय की कहानी दर्शाता है।
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सत्य, साहस, भक्ति और पुत्रीय कर्तव्य जैसे गुणों का प्रतीक।
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अपने आदर्श नेतृत्व और धर्मी आचरण के लिए पूजे जाते हैं, जो राजाओं और व्यक्तियों के लिए एक उदाहरण स्थापित करते हैं।
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उनकी जीवन कहानी और मूल्य हिंदू संस्कृति में पूरे सम्मान के साथ मनाए और श्रद्धापूर्वक याद किए जाते हैं।
भगवान राम का गोत्र क्या है ? What is Gotra of Lord Shriram (aayodhyarammandir.com)
संयोजन का महत्व:
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भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में, अयोध्या को अत्यधिक धार्मिक महत्व प्राप्त होता है, जो भक्तों को आशीर्वाद और आध्यात्मिक जुड़ाव की तलाश में आकर्षित करता है।
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राम मंदिर का निर्माण एक पवित्र स्थान को पुनः प्राप्त करने और हिंदू सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने का प्रतीक है।
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भगवान राम की कहानी एक शक्तिशाली नैतिक दिशा-निर्देशक के रूप में कार्य करती है, जो सामाजिक मूल्यों को प्रभावित करती है और पीढ़ियों को प्रेरित करती है।
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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण: एक सतत यात्रा
अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण एक ऐसा विषय है जिसने वर्षों से भारत में जनमानस को आंदोलित किया है। 2019 में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ, जिसे कई लोगों द्वारा न्याय की जीत के रूप में देखा गया। निर्माण कार्य धीरे-धीरे लेकिन निर्धारित रूप से आगे बढ़ रहा है, और मंदिर के वास्तविक रूप को लेने की राह पर है।
निर्माण की वर्तमान स्थिति:
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राम मंदिर निर्माण कार्यों की आधारशिला 2020 में रखी गई थी।
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वर्तमान में भूतल का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है।
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स्तंभों का निर्माण और अन्य संरचनात्मक कार्य प्रगति पर हैं।
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मंदिर का डिजाइन राजस्थानी और उत्तर भारतीय मंदिर शैली का मिश्रण है।
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निर्माण में उच्च गुणवत्ता वाले पत्थरों का उपयोग किया जा रहा है।
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निर्माण कार्य 2024 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है।
सामाजिक और धार्मिक महत्व:
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राम मंदिर का निर्माण न केवल एक धार्मिक स्थल का निर्माण है, बल्कि ऐतिहासिक विवाद के समाधान का प्रतीक भी है।
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लाखों हिंदू इस मंदिर को अपनी सांस्कृतिक विरासत और आस्था का केंद्र मानते हैं।
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इस परियोजना से अयोध्या में तीर्थयात्रा और पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
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निर्माण से स्थानीय समुदाय के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
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अयोध्या के राम मंदिर का शानदार स्वरूप | Ayodhya Ram Mandir Architecture
अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर अपनी भव्यता और गौरवशाली डिजाइन के लिए चर्चित है। आइए, इसकी विशेषताओं पर एक नज़र डालें:
आकार:
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मंदिर परिसर कुल मिलाकर 2.77 एकड़ क्षेत्र में फैला है।
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मुख्य मंदिर की लंबाई 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट और ऊंचाई 161 फीट है।
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यह भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक होगा।
शैली:
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मंदिर की शैली को “नागर शैली” के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो उत्तर भारत में मंदिर वास्तुकला की प्रमुख शैली है।
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यह शैली ऊंचे शिखरों, जटिल पत्थर की नक्काशी और विशाल मंडपों (हॉल) की विशेषता रखती है।
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राम मंदिर में पांच शिखर होंगे, जो केंद्रीय शिखर को घेरेंगे, जो इस शैली की एक विशिष्ट विशेषता है।
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अन्य प्रमुख हिंदू मंदिरों की तरह, राम मंदिर का डिजाइन वास्तु शास्त्र के प्राचीन सिद्धांतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
निर्माण सामग्री:
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मंदिर मुख्य रूप से गुलाबी बलुआ पत्थर से बनाया जा रहा है, जो टिकाऊपन और सुंदरता दोनों प्रदान करता है।
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सफेद संगमरमर का उपयोग मूर्तियों, स्तंभों और अन्य अलंकरणों के लिए किया जाएगा।
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निर्माण में तांबे और सोने का भी सीमित मात्रा में प्रयोग किया जाएगा।
अन्य विशेषताएं:
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मंदिर परिसर में पांच मंडप भी होंगे, जो समारोहों और सभाओं के लिए उपयोग किए जाएंगे।
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परिसर में मंदिर के चारों ओर परिक्रमा के लिए मार्ग भी होंगे।
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मंदिर परिसर में उद्यान और जल निकाय भी विकसित किए जा रहे हैं।
निर्माणाधीन राम मंदिर भारत के मंदिर वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण बनने की राह पर है। इसका विशाल आकार, राजसी शैली और उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री आने वाले पीढ़ियों के लिए आश्चर्यजनक साबित होगी।
जानिये अयोध्या राम मंदिर का पूरा निर्माण कब तक होगा ?
अयोध्या राम मंदिर परिसर में अन्य मंदिर
हालांकि अयोध्या में राम मंदिर परिसर का मुख्य केंद्र भव्य राम मंदिर ही है, लेकिन पूरी परियोजना परिसर के भीतर अतिरिक्त मंदिरों और संरचनाओं का निर्माण करने का लक्ष्य रखती है। आइए जानें राम मंदिर परिसर के अंदर अन्य नियोजित मंदिरों के बारे में:
पुष्टि प्राप्त मंदिर:
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चार कोने वाले मंदिर: मुख्य राम मंदिर परिसर के प्रत्येक कोने पर सूर्य भगवान (सूर्य देव), माता भगवती (देवी दुर्गा), भगवान गणेश और भगवान शिव को समर्पित।
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अन्नपूर्णा देवी मंदिर: परिसर की उत्तरी भुजा पर स्थित, भोजन और पोषण की देवी को समर्पित।
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हनुमान जी मंदिर: परिसर के दक्षिणी भुजा पर स्थित, भगवान राम के वफादार वानर भक्त को समर्पित।
प्रस्तावित मंदिर:
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विभिन्न संतों और मूर्तियों को समर्पित मंदिर:
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रामायण के लेखक महर्षि वाल्मीकि
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राम के आध्यात्मिक गुरु महर्षि वशिष्ठ
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राम के युवावस्था में उनके गुरु महर्षि विश्वामित्र
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पूजनीय ऋषि महर्षि अगस्त्य
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राम से मित्रता करने वाले निषधराज
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राम और लक्ष्मण को फल चढ़ाने वाली आदिवासी महिला माता शबरी
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महर्षि गौतम की पत्नी ऋषिपत्नी देवी अहिल्या
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वर्तमान स्थिति:
चार कोने वाले मंदिरों का निर्माण वर्तमान में चल रहा है, जबकि अन्नपूर्णा देवी और हनुमान जी मंदिरों का निर्माण अभी शुरू नहीं हुआ है। संतों और मूर्तियों को समर्पित प्रस्तावित मंदिर अभी भी योजना में हैं।
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श्रीराम मंदिर अयोध्या – मूर्तिकार
श्रीराम मंदिर अयोध्या के गर्भगृह में स्थापित भगवान राम की मूर्ति का निर्माण कर्नाटक के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज ने किया है। यह मूर्ति 51 इंच ऊंची है और कृष्ण शिला से बनाई गई है। मूर्ति में भगवान राम की पांच साल की उम्र की बाल रूप में प्रस्तुति की गई है। मूर्ति की नाक, आंखें, मुस्कान और भंगिमा में दिव्यता और मासूमियत का अद्भुत संगम है।
अरुण योगीराज को मूर्तिकला विरासत में मिली है। उनके पिता भी मूर्तिकार थे। अरुण योगीराज ने MBA भी किया है, लेकिन मूर्तिकला से उनका लगाव बचपन से ही रहा है। उन्होंने कई ऐतिहासिक मूर्तियों को तराशने का काम किया है, जिनमें सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति भी शामिल है।
श्रीराम मंदिर अयोध्या की मूर्ति बनाने के लिए अरुण योगीराज ने तीन साल तक कड़ी मेहनत की। मूर्ति को तराशने के लिए उन्होंने कृष्ण शिला का उपयोग किया। कृष्ण शिला एक प्रकार का पत्थर है जो बहुत ही कठोर होता है। मूर्ति को तराशने के लिए अरुण योगीराज ने विशेष प्रकार के औजारों का उपयोग किया।
The Sculptor of the Murti of Shriram Mandir Ayodhya
The idol of Lord Rama in the garbhagriha of Shriram Mandir Ayodhya is the creation of Arun Yogiraj, a renowned sculptor from Karnataka. The 51-inch tall idol is carved from black granite. The idol presents Lord Rama in his childhood form, at the age of five. The idol’s nose, eyes, smile, and posture reflect a stunning blend of divinity and innocence.
Arun Yogiraj inherited the art of sculpting. His father was also a sculptor. Arun Yogiraj also holds an MBA, but his passion for sculpting has been there since childhood. He has sculpted several historical statues, including one of Subhash Chandra Bose.
It took Arun Yogiraj three years of hard work to create the idol of Shriram Mandir Ayodhya. He used black granite for carving the idol. Black granite is a type of stone that is extremely hard. Arun Yogiraj used special tools to carve the idol.
The creation of the idol of Shriram Mandir Ayodhya is a historic achievement. The idol is a symbol of India’s Hindu religion and culture. The idol will be a source of inspiration for generations to come.
Here are some of the key takeaways from the text:
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The idol of Lord Rama in the garbhagriha of Shriram Mandir Ayodhya is carved from black granite.
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The idol is 51 inches tall and presents Lord Rama in his childhood form.
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The sculptor of the idol is Arun Yogiraj, a renowned artist from Karnataka.
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It took Arun Yogiraj three years to create the idol.
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The creation of the idol is a historic achievement and a symbol of India’s Hindu religion and culture.
अयोध्या के राम मंदिर के वास्तुकार: शिल्प कारीगरी का चमत्कार !
अयोध्या में बन रहा भव्य श्री राम जन्मभूमि मंदिर सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि अद्भुत भारतीय स्थापत्य कला का भी बेजोड़ उदाहरण है। इस मंदिर की विलक्षण रचना के पीछे एक प्रसिद्ध नाम छिपा है – श्री चंद्रकांत सोमपुरा। आइए जानते हैं अयोध्या के राम मंदिर के मुख्य वास्तुकार के बारे में रोचक जानकारी…
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परंपरा का सिलसिला: चंद्रकांत सोमपुरा गुजरात के सोमपुरा परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जो पिछले 15 पीढ़ियों से मंदिरों की डिजाइन में माहिर हैं। भारत के कई ऐतिहासिक मंदिरों, जैसे सोमनाथ मंदिर, उनके वंशजों की कलात्मक प्रतिभा के गवाह हैं।
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राम मंदिर की डिजाइन: 1988 में अहमदाबाद के सोमपुरा परिवार ने मूल डिजाइन तैयार की थी। हालांकि, 2020 में इस डिजाइन में कुछ बदलाव किए गए, जो हिंदू ग्रंथों, वास्तु शास्त्र और शिल्प शास्त्रों के अनुरूप हैं। मंदिर 380 फीट लंबा, 250 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊंचा होगा। इसमें 392 स्तंभ और 44 दरवाजे हैं।
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शैली का सार: मंदिर पारंपरिक नागर शैली में निर्मित हो रहा है, जिसका उत्तर भारत में विशेष महत्व है। इसमें अष्टकोणीय आधार, ऊपर की ओर घुमावदार दीवारें और चार विशाल शिखर हैं। सोमपुरा ने दक्षिण भारतीय मंदिरों से प्रेरणा लेते हुए एक गोपुरम भी शामिल किया है जो पूर्वी द्वार की शोभा बढ़ाता है।
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कलात्मक विवरण: मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर रामायण के दृश्यों, हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों और जटिल ज्यामितीय पैटर्न की नक्काशी की गई है। यह नक्काशी न केवल मंदिर की सुंदरता बढ़ाती है, बल्कि भारतीय संस्कृति और धर्मशास्त्र को भी दर्शाती है।
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विरासत का निर्माण: सोमपुरा का मानना है कि राम मंदिर सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि भारत की अमूल्य सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। उनके लिए इस मंदिर की डिजाइन करना जीवन का सौभाग्य है।
The VIP Darshan Facility at Ram Mandir Ayodhya (aayodhyarammandir.com)
अयोध्या राम मूर्ति काला क्यों है?
अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में विराजमान राम लला की मूर्ति काले रंग की होने के दो मुख्य कारण हैं:
1. सामग्री:
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मूर्ति कृष्ण शिला से बनी है, जो कर्नाटक में पाया जाने वाला एक काला ग्रेनाइट पत्थर है। यह पत्थर अपनी बारीक बनावट और आसानी से तराशे जाने की खूबी के लिए जाना जाता है, जो जटिल विवरणों के लिए उपयुक्त है।
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यद्यपि पत्थर का प्राकृतिक रंग काला है, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इसे चुनने का एकमात्र कारण रंग नहीं है। मूर्तिकला के लिए इसकी उपयुक्तता और भगवान कृष्ण (जिन्हें भी काले मूर्तियों में दर्शाया गया है) के साथ इसके जुड़ाव ने भी भूमिका निभाई थी।
2. प्रतीकात्मक महत्व:
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हिंदू परंपरा में, काला रंग अक्सर आदिम ऊर्जा, शक्ति और परिवर्तन का प्रतीक है। यह भगवान विष्णु का प्रतीक है, जिनके अवतार भगवान राम हैं।
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कुछ व्याख्याएं काले रंग को ब्रह्मांडीय सत्य, भगवान की अमरता, और भगवान राम के शाश्वत सार को दर्शाते हुए देखती हैं।
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यह महत्वपूर्ण है कि काले रंग को नकारात्मक अर्थों से जोड़ने से बचा जाए क्योंकि इसमें मूर्ति के संदर्भ में महत्वपूर्ण सकारात्मक अर्थ रखते हैं।
प्रतीकों और विशेषताओं से भरपूर अयोध्या का राम मंदिर: डिजाइन की गहराई में एक झलक
अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर केवल एक भव्य संरचना ही नहीं है, बल्कि हिंदू संस्कृति और परंपरा के प्रतीकों से भरपूर डिजाइन का नमूना है। आइए, इसकी कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रतीकों पर एक नज़र डालें:
1. पांच शिखर: मंदिर के केंद्रीय शिखर को चार अन्य शिखर घेरे हुए हैं, जो पांच पांडवों या हिंदू धर्म के पांच प्रमुख तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) का प्रतीक माना जा सकता है।
2. स्तंभों पर नक्काशी: मंदिर के विशाल स्तंभ रामायण की कहानियों, हिंदू देवी-देवताओं और पशु-पक्षियों की नक्काशियों से सुसज्जित हैं। ये नक्काशियां प्राचीन कला और कौशल का प्रदर्शन करती हैं, साथ ही कहानियों और प्रतीकों के माध्यम से भक्तों को जोड़ती हैं।
3. वास्तु शास्त्र का समावेश: मंदिर का निर्माण प्राचीन हिंदू वास्तुकला सिद्धांतों, वास्तु शास्त्र, को ध्यान में रखकर किया गया है। यह माना जाता है कि वास्तु शास्त्र के पालन से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सौभाग्य प्राप्त होता है।
4. पंचरंगी झंडा: मंदिर पर हमेशा एक विशिष्ट पंचरंगी झंडा फहराया जाता है। इन पांच रंगों – केसरिया, सफेद, हरा, लाल और नीला – का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, जो क्रमशः त्याग, पवित्रता, समृद्धि, साहस और शांति का प्रतीक हैं।
5. राम चरण पादुकाएं: मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम के चरण पादुकाओं की पूजा की जाती है। ये पादुकाएं राम के दिव्य पदचिह्नों का प्रतीक हैं और उनके आशीर्वाद को पाने के लिए श्रद्धालु इनकी पूजा करते हैं।
6. सीता रसोई: यह स्थान माता सीता की रसोई का प्रतीक है, जो आतिथ्य और त्याग का प्रतीक है। यहां धार्मिक भोज का आयोजन किया जाता है और जरूरतमंद लोगों को भोजन वितरित किया जाता है।
7. गरुड़ स्तंभ: मंदिर परिसर में भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की एक विशाल मूर्ति स्थापित है। गरुड़ धर्म और ज्ञान का प्रतीक है।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं, और मंदिर के हर कोने में प्रतीक और विशेषताएं छिपी हुई हैं। आने वाले समय में, यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल, बल्कि भारतीय संस्कृति और विरासत का एक स्थायी प्रतीक बनकर खड़ा होगा।
कृपया ध्यान दें: प्रतीकों के अर्थ अलग-अलग लोगों के लिए भिन्न हो सकते हैं। मैंने प्रचलित व्याख्याओं पर आधारित जानकारी प्रस्तुत की है।
अयोध्या राम मंदिर में भगवान राम के साथ लक्ष्मण और माता सीता के न होने के पीछे कुछ कारण हैं:
1. मूर्ति की अवस्था:
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गर्भगृह में स्थापित भगवान राम की मूर्ति बाल रूप में है, जब वे 5 वर्ष के थे।
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इस उम्र में, भगवान राम का विवाह माता सीता से नहीं हुआ था, और लक्ष्मण का जन्म भी नहीं हुआ था।
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मंदिर में स्थापित बाल राम की मूर्ति “रामलला” के नाम से जानी जाती है।
2. धार्मिक परंपरा:
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कुछ हिंदू धार्मिक परंपराओं के अनुसार, बाल रूप में भगवान राम की पूजा अकेले ही की जाती है।
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माता सीता और लक्ष्मण को अलग मंदिरों या मूर्तियों में पूजा जाता है।
3. मंदिर का स्वरूप:
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अयोध्या राम मंदिर का निर्माण “नवग्रह शैली” में किया जा रहा है।
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इस शैली में, गर्भगृह में केवल एक ही मूर्ति स्थापित की जाती है।
4. भविष्य की योजना:
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कुछ योजनाओं के अनुसार, भविष्य में मंदिर परिसर में माता सीता और लक्ष्मण के लिए अलग मंदिर या मूर्तियां स्थापित की जा सकती हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि
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भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता एक दूसरे से अविभाज्य हैं, और भक्तों के लिए उनकी पूजा समान रूप से महत्वपूर्ण है।
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मंदिर में भगवान राम की बाल रूप की मूर्ति स्थापित करने का निर्णय धार्मिक परंपराओं और मंदिर के स्वरूप पर आधारित है।
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